उनका युहीं देख कर अन्देखा कर जाना ।
हर वक्त ख़याल घर कर जाता है ।
अपने आप को ढाढस बंधा पाता नही क्यूंकि ।
हर आईने में चेहरा उनका नज़र आता है ॥
उनकी मौसिकी का कुछ यूँ हुआ है असर मुझपर ।
की हर पल को ग़ज़ल की तरह गुनगुनाता हूँ ।
बात दो बात कर नही पाता किसीसे क्यूंकि ।
हर आवाज़ में अल्फाज़ उनका कोई सुन जाता हूँ ॥
एक टक देखा करता हूँ सिफर में, मैं ।
आहट किसी की नही ले पाता हूँ ।
पर जो हवा उनके आँचल को छू कर आती है ।
उसका एहसास तुंरत ही पा जाता हूँ ॥
बैठ कर दिनभर खिले गुलिस्ताँ में भी ।
पल दो पल को मुस्कुरा पाता नही मैं ।
ताज़े फूलों की महक में भी दअरसल।
अब्र उनका घुला घुला सा पाता हूँ ॥
यूँ तो आशिकों ने किए होंगे उनसे।
साथ जीने मरने के कसमे वादे।
पर मैं जो जीते जी मरा जा रहा हूँ।
वो जज़्बात नहीं बयाँ कर पाता हूँ ॥